Harshali Jain Sadhvi Story: 32 लाख पैकेज की जॉब छोड़ जैन साध्वी बन रही यह लड़की; उम्र अभी सिर्फ 28 साल

32 लाख पैकेज की जॉब छोड़ जैन साध्वी बन रही यह लड़की; उम्र अभी सिर्फ 28 साल, पिता बड़े बिजनेसमैन, मां से कहा- पैसों में सुख नहीं

Rajasthan Harshali Jain Sadhvi Left Software Engineer Job 32 Lakhs Package

Rajasthan Harshali Jain Sadhvi Left Software Engineer Job

Harshali Jain Sadhvi Story: परमात्मा की ओर जब सच में कदम बढ़ते हैं तो परमात्म में लीन हो जाने की इच्छा तीव्र हो जाती है। राजस्थान के ब्यावर की रहने वाली एक लड़की के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। यह लड़की इस समय खास चर्चा में है। नाम है हर्षाली जैन। हर्षाली की उम्र अभी सिर्फ 28 साल है।

हर्षाली एक कारोबारी परिवार से हैं और उनके पिता ब्यावर इलाके के बड़े बिजनेसमैन हैं। वहीं हर्षाली जैन खुद सालाना 32 लाख का पैकेज छोड़कर अब साध्वी बनने जा रहीं हैं। हर्षाली बेंगलुरु में टॉप अमेरिकी कंपनी एडोबी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थीं। लेकिन नौकरी छोड़कर हर्षाली ने सन्यासी मार्ग पर आगे बढ़ने का फैसला किया है। हर्षाली का दीक्षा समारोह 3 दिसंबर को होगा।

फिलहाल, हर्षाली के साध्वी बनने के बारे में जो भी जान रहा है। वो एक बार के लिए दंग रह जा रहा है। आज राजस्थान के हर्षाली की कहानी सोशल मीडिया से लेकर गूगल तक सर्च में है। दरअसल, जिस उम्र में युवा अपने करियर, शादी और परिवार बसाने के बारे में सोचते हैं। उस उम्र में हर्षाली ने सब कुछ छोड़कर पूरी उम्र एक सन्यासी जीवन जीने का फैसला कर लिया है। वो भी तब जब हर्षाली करियर में बुलंदियों पर थीं।

बहराल, हर्षाली के इस फैसले में उनके परिवार ने भी अपनी मंजूरी जताई है और खुशी से बेटी को सन्यासी मार्ग पर जाने की आज्ञा दे दी है। हाल ही में हर्षाली के सम्मान में उनके परिवार और जैन समाज में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में कई रस्में हुईं।

Rajasthan Harshali Jain Sadhvi

 

हर्षाली ने कहा- मुझे ख्याल आया, मैं क्या कर रहीं हूं

साध्वी बनने को लेकर हर्षाली का कहना है कि, जॉब करते हुए मेरे मन में एक ही ख्याल आया कि यह जीवन क्यों मिला है। मैं क्या कर रहीं हूं और मुझे क्या करना चाहिए। हर्षाली ने बताया, ''मुझे इस मार्ग पर कदम आगे बढ़ाने की प्रेरणा मेरे गुरु देव श्री संत रामलाल महाराज जी से मिली। उन्होंने ही मुझे बताया कि, सुख क्या है, दुख क्या है? जीवन क्या है? ये जीवन क्यों मिला है? ये सोचने के लिए मुझे प्रेरित किया। उन्ही की कृपा से मैं इस मार्ग पर कदम आगे बढ़ा रही हूं।

हर्षाली ने आगे कहा, ''हम अपनी भाग-दौड़ की ज़िंदगी में कुछ पल-कुछ क्षण अपने लिए निकाल लें, बाहर की दुनिया हमने बहुत देखी है। बहुत देख रहे हैं। परंतु अपने अंदर की दुनिया बाहर की दुनिया से बहुत-बहुत बड़ी है। हम उस अंदर की दुनिया को भी जाने। उसी के अंदर असली सुख है। हमें उस सुख की जरूर अनुभूती होगी और हमारा मनुष्य  जीवन सार्थक होगा।

हर्षाली ने मां से कहा- पैसों में सुख नहीं

वहीं हर्षाली के साध्वी बनने के बारे में मां ऊषा का कहना है कि, उन्होंने बेटी को बहुत मनाने की कोशिश की। लेकिन अंत में उसकी खुशी साध्वी जीवन में देखकर वो भी राजी हो गए। उन्होंने कहा कि, मेरी बेटी की दीक्षा 3 दिसम्बर को है।

मां ने बताया कि, हर्षाली की एडोबी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी थी। 32 लाख का सालाना पैकेज था। लेकिन उसका कहना है कि उसको पैसे से कोई सुख नहीं है। इसलिए उसे संयम मार्ग की ओर से आगे बढ़ना है। उसने हमसे आज्ञा मांगी। इसलिए हमने सोचा कि जब इसका सुख इसी में है तो हमने उसे आज्ञा दे दी।  

साध्वी जीवन की ओर कैसे हो गया हर्षाली का झुकाव

हर्षाली बेंगलुरु की मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर काम कर रही थीं। सब कुछ सांसारिक तरीके से चल रहा था। करियर में आगे बढ़ने की ललक थी। सांसारिक मोह-माया थी। लेकिन जब कोरोना काल में हर्षाली वर्क फ्रॉम होम कर रही थीं तो उस समय ब्यावर में जैन संत रामलाल महाराज का चातुर्मास कार्यक्रम चल रहा था।

इस बीच घर में रहने के दौरान हर्षाली ने चातुर्मास कार्यक्रम में शिरकत की। बस यहीं से हर्षाली का धर्म की ओर झुकाव बढ़ गया और इतना बढ़ गया कि जीवन को लेकर हर्षाली के विचार ही बदल गए। अब हर्षाली जैन आचार्य रामलाल महाराज जी से दीक्षा लेकर साध्वी जीवन अपनाएंगी।